Tuesday, 2 April 2013


रेल की राजनीति

प्रो.रीता वर्मा

रेल मंत्री पवन कुमार बंसल ने झारखंड में कांग्रेस के सिमटते जनाधार को ध्यान में रखकर रेल बजट में झारखंड राज्य को तवज्जो नहीं दिया। दरअसल इस रेल बजट को राजनैतिक बजट कहना ज्यादा समीचीन होगा।
झारखंड की जनता को रेल मंत्री से काफी उम्मीदें थी। ऐसा माना जा रहा था कि झारखंड प्रदेश की पांच अधूरी रेल परियोजनाओं के लिए बजट में धन की व्यवस्था की जाएगी। साथ ही दर्जन भर नई ट्रेनें तथा दो दर्जन ट्रेनों की फ्रिक्वेंसी बढ़ाई जाएगी। धनबाद को रेलवे जोन बनाने तथा बोकारो को धनबाद रेल डिवीजन में शामिल करने की मांग पूरी की जाएगी। धनबाद से दिल्ली, अमदाबाद, मुजफ्फरपुर तथा दक्षिण भारत के कुछ महत्वपूर्ण स्टेशनों के बीच नियमित एक्सप्रेस ट्रेन सेवा की मांग वर्षों पुरानी है। नई दिल्ली-रांची राजधानी एक्सप्रेस को भी नियमित चलाए जाने की मांग काफी समय से की जा रही है। पर रेल मंत्री ने केवल नई दिल्ली-रांची गरीब रथ का एक फेरा बढ़ाकर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर ली है। न तो रेल कारखाना खोलने का प्रस्ताव किया गया और न ही झारखंड के किसी रेलवे स्टेशन को माडल स्टेशन में तब्दील करने योग्य समझा गया।
वैसे भी पूरा रेल बजट जन विरोधी है और इस बजट से रेलवे की सूरत तो नहीं बदलेगी, बल्कि पहले से ही महंगाई की मार झेल रही जनता को महंगाई का ज्यादा प्रहार झेलना पड़ेगा। रेल मंत्री ने बजट से पहले ही रेल भाड़े में वृद्धि की थी। अब रिजर्वेशन चार्ज, तत्काल चार्ज तथा सुपरफास्ट चार्ज बढ़ाकर पिछले दरवाजे से यात्री भाड़ा में इजाफा कर दिया है। दूसरी तरफ डीजल की बड़ती कीमतों का हवाला देकर माल भाड़े में वृद्धि की है। इन सब का असर अंतत: जनता पर ही पड़ना है।  

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